आगम वाणी 🌺 दशवैकालिक सूत्र - Agam - Dashvaikalik sutra
आगम वाणी 🌺 दशवैकालिक सूत्र 🌺
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सु - भिक्खु (भिक्षु) नामक दसवां अध्ययन
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🌷 हाथ - पैर आदि की यतना 🌷
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गाथा:15:- साधु संपूर्ण संयति होता है। वह हाथ, पैर, वाणी, इंद्रिय से संयत होता है। कछुए के समान अपने अंगों को गुप्त रखता है और आवश्यकता पड़ने पर यतना पूर्वक कार्य करता है।
👉 मनोगुप्ति के लिए इंद्रियों की चंचलता को दूर करना आवश्यक है, क्योंकि इंद्रिय विजय से मन विजय अति आसान हो जाता है।
👉 संयत इंद्रिय वाला आध्यात्म भाव में रत और समाधी युक्त आत्मा वाला सूत्रार्थ सम्यक भाव से जान लेता है।
🌷 वहीं भिक्षु है 🌷
‼️ अमुर्छा भाव ‼️
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✍️ मुनि संयम साधना के लिए स्वीकृत उपकरणों में भी मुर्छा भाव नहीं रखता है। संयम साधन पाप - पाटला, वस्त्र - पात्र, रजोहरण आदि।
👉 आहार - पानी भी वह ज्ञात - अज्ञात कुलो से बिना समाचार दिए थोड़ा - थोड़ा मांगकर लेता है।
🙏 संयम को दुषित करने वाले दोषों का सेवन नहीं करता है। खरीदना, बेचना, संग्रह करना, कराना इन व्यापारिक कार्यों से सदैव दूं रहता है।
👉 जो इन्हें छोड़ देता है वह इनमें आसक्ति नहीं रखता है।
🌷 वह भिक्षु है 🌷
विवेचन:- मुर्छा का अर्थ मोह में ग्रस्त होना। उपधी और साधनों में मुर्छित रहने वाला साधक करने योग्य और नहीं करने योग्य का विवेक नहीं रखता है।
👉 आदर्श साधक उपधी और परिग्रह में अमुर्छित और अगृद्ध रहता है। वह कभी भी किसी भी क्षेत्र में गृहस्थ से प्रतिबद्ध नहीं होता है।
🌹🌷👉 अब चिंतन कीजिए वाहन, हाथ गाड़ी आदि शब्दों का प्रयोग नहीं किया है। अर्थात वे उपधी में रखने योग्य नहीं है और जो उपधी में रखने योग्य है उसकी भी मर्यादा बताई है।
🌺👉 अतः साधु को किसी भी प्रकार का वाहन, जूते आदि जो साधु के लिए आगम में वर्जित बताएं है उनका उपयोग नहीं करना चाहिए।
🌷 ये सब महा कर्म बंध के कारण है। इन्हें देने वाले श्रावक और ग्रहण करने वाले साधु सभी नीच गति का बंध करते हैं।
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